गुलेल सी लगती है घंटी पत्थर सी ठोस ध्वनि कानों को चीरती मीठी उद्घोषणा जब भी अपना नंबर मिलाता हूँ व्यस्त ही जाता है।
हिंदी समय में मृत्युंजय की रचनाएँ